Thursday, February 14, 2013

शिकवे गिले करना नही


आसुओंसे है गुजारिश
आँखोंसे अब बहना नही
इत्तफाकन मिल गये तो
शिकवे गिले कहना नही

जुस्तजू ना खत्म होगी
जिंदगी चलती रही
मोडपर हर जिंदगीके
मायुसी मिलती रही
ग़म का सेहरा सर पे अपने
और कोई गहना नही
इत्तफाकन मिल गये तो
शिकवे गिले कहना नही

जिंदगी की एक ख़्वाइश
वो हमेशा खुश रहे
दर्द से रिश्ता हमारा
सहते रहे बिन उफ कहे
बहारों उनसे मिलो तुम
मेरी गली रहना नही
इत्तफाकन मिल गये तो
शिकवे गिले कहना नही

गुजरती है शाम अपनी
मय, नशा और आह पर
लडखडाते कदम मेरे
बेहोष तेरी राह पर
दिल खुला, अछियोंका
बुरखा कभी पहना नही
इत्तफाकन मिल गये तो
शिकवे गिले कहना नही

तीसरा मै कह चुका हूं
तलाक आइना देख कर
खुद से अज़ादी कहाँ?
जिंदा हुं यादें रोक कर
आरजू है अल्विदा लूं
बस और कुछ सहना नही
इत्तफाकन मिल गये तो
शिकवे गिले कहना नही


निशिकांत देशपांडे मो.क्र. ९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com

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