जीवन किनारे
छायी बहारे
किसके सहारे?
पता है मुझे
खुशी की कतारें
आँगन हमारे
जलते है सारे
पता है मुझे
गम के गुब्बारे,
गये पल करारे
बदली लकिरें
पता है मुझे
कैसा जहां रे
पापोंभरा रे
सिर क्यों झुका रे?
पता है मुझे
अश्कों के कतरे
आँखो मे उतरे
क्यों टले खतरे?
पता है मुझे
अहं के फव्वारे
स्वार्थों से हारे
दिल रब पुकारे
पता है मुझे
प्रभू संग दरारे
किसने भरी रे
शरण मे तिहारे
पता है मुझे
निशिकांत देशपांडे मो.क्र. ९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com
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