Wednesday, February 20, 2013

लगने लगा


मान, सन्मान, शान, शौक़त
सब इतिहास लगने लगा
जिंदगीमे खाली पन का
अब अहसास लगने लगा

हाथकडियाँ डाली अपनोंने
गुत्थी प्यार की छूटे ना
कोशिश मेरी, यही अश्क के
बांध कहीं अब टूटे ना
तलाश थी जब एक बंदे की
हर कोई खास लगने लगा
जिंदगी मे खाली पन का
अब अहसास लगने लगा

खुशबू ही खो गयी फूल से
क्या मतलब है खिलने का?
नियती ने तय किया विरह, तो
क्या मतलब है मिलने का?
सूना सूना सावन अबके
एक वनवास लगने लगा
जिंदगी मे खाली पन का
अब अहसास लगने लगा

प्रभू चरण मे यही प्रार्थना
अपनों को मत तोडो तुम
हो शामिल मेरे अपनों मे
खुद को भी संग जोडो तुम
रिश्तों का रेशम सा धागा
अब एक फास लगने लगा
जिंदगी मे खाली पन का
अब अहसास लगने लगा

पैलतीर जब दिखे सामने
पीछे मुडकर क्यों देखे?
काम किया ना कभी बुरा तो
नीचे मुडकर क्यों देखे?
माला जप कर, जीवन रब का
अब एक साँस लगने लगा
जिंदगीमे खाली पन का
अब अहसास लगने लगा


निशिकांत देशपांडे मो.क्र. ९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com




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