होरी है आज सखी
खिल उठे है रंग
राधा की सुध बिसरी
गिरिधर के संग
मन भावन लगता था
शाम रूप साधा
कसरिया तनमन पर
भिग गयी राधा
यमुना आंगन आयी
धो न सकी रंग
राधा की सुध बिसरी
गिरिधर के संग
भक्तिरस मे मीरा ने
खेली थी होली
आपनाने गिरिधर को
फैली थी झोली
जीत प्यार की, पी कर
जहर के तरंग
राधा की सुध बिसरी
गिरिधर के संग
अर्जुन का अज्ञान मे
एक पल था बीता
ज्ञान रंग मे डूबे
सुन कर गीता
आँधियारा गुनगुनाये
तेज के अभंग
राधा की सुध बिसरी
गिरिधर के संग
निशिकांत देशपांडे मो.क्र. ९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com
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