बारिश मौसमका हर लम्हा
खुष्कोंको बहलाता है
सफर पुराने कुछ यादोंका
अश्कोंको बहलाता है
कितने वादे कितने सपने?
हर वादा था सपनासा
अच्छा हुआ जगा दिया अब
दिखे न कोई अपनासा
जंगल यह झूठे वादोंका
अश्कोंको बहलाता है
नर्म रेत पर निशाँ पाँव के
हमने कितने छोडे थे
लिखकर अपने नाम रेत पर
आरमानों से जोडे थे
आया तूफाँ जब दर्दोंका
अश्कोंको बहलाता है
सुख मे तो हमराज मिले
सोंचा दुख मे साथ करें
दर्द भरी भावूक आँखोंसे
शबनम की बरसात करें
सहारा नही जब कंधों का
अश्कोंको बहलाता है
चंदा सूरज मे धरती का
पर्दा, ग्रहण लगाता है
कैसा पर्दा था आपस मे?
अब भी ज़ख्म जगाता है
ज़िक्र जहाँ भी हो पर्दोंका
अश्कोंको बहलाता है
हीर रांझ क्या लैला मजनू?
कैसी यारी कैसे यार?
कराहों भरा जीवन फिर भी
बेमिसाल था उनका प्यार
टूटा दिल जब भी बंदोंका
अश्कोंको बहलाता है
निशिकांत देशपांडे मो. क्र. ९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com
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