अपनों से गिला शिकवा
कभी हमने न जाना है
मिल जुल न सके फिर भी
यादों का खजाना है
वाक़िफ हूं खूब तुझ से
तनहाई मत डराना
सदियों से साथ तेरा
तू ही मेरा तराना
अंदर उदास फिर भी
खुद को ही रिझाना है
मिल जुल न सके फिर भी
यादों का खजाना है
गर्दिश मे है सितारे
किसकी दुवा नही है
आँखें है सुर्ख मेरी
मय को छुआ नही है
गायब है नींद फिर भी
सपनों को सजाना है
मिल जुल न सके फिर भी
यादों का खजाना है
शबनम की ओस से भी
पहचान कहाँ मेरी?
असवन की चली आँधी
आहट जो सुनी तेरी
दिल की लगी को फिर भी
अश्कोंसे बुझाना है
मिल जुल न सके फिर भी
यादों का खजाना है
साकी के संग पीना
क्या दिन वो सुहाने थे !
पीने के दौर सारे
मिलने के बहाने थे
साकी नही है फिर भी
आँखों से पी जाना है
मिल जुल न सके फिर भी
यादों का खजाना है
मुष्किल है समझ पाना
मुझको हिसाब तेरा
क्या हाल बन गया है
परवरदिगार मेरा?
बेबाक मै हूं फिर भी
कफ़न तो सिलाना है
मिल जुल न सके फिर भी
यादों का खजाना है
निशिकांत देशपांडे मो.क्र. ९८९०७ ९९०२३
E Mail--- nishides1944@yahoo.com
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