Saturday, December 8, 2012

ज़ख्म

ज़ख्म मेरे, आप कहिये
आपसे क्या कह गये?
देख लेना ज़ख्म हसते
दर्द सारे सह गये

ज़ख्म तेरा एक काफ़ी
है भुलाने दर्द सारे
शुक्रिया तेरी वजह से
दर्द है बेदर्द सारे

मत डराओ ज़्खमसे यूं
ओ मेरे हमराह है
काफ़ीले खुशियोंके हरदम
मेरे लिये गुमराह है

बेजुबाँ है ज़ख्म मेरे
ज़िक्र उनका क्यों करे?
अपनोंने कुछ दिये, कुछ
उनसे मिले जो है परे

ज़्ख्म काफ़ी है पुराने
और कुछ तो है नये
सुर्ख हाथोंको सहारा
देते रहे सब कुछ सहे

ज़ख्म कहते है, ये इन्सां
दर्द मे खुश है अजब !
दर्द की बस्तीमे रुतबा
खैरमक़्दम बा आदब


निशिकांत देशपांडे मो. क्र. ९८९०७ ९९०२३

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