Sunday, December 23, 2012

श्वान की व्यथा


जब मै सुनाउं मेरी नही, पूरे श्वान जन की व्यथा
बन जायेगी इन्सानों के घटियापन की कथा

समानताएं कुछ होती है, देव और दानव मे भी
वैसेही कुछ होती है श्वान और मानव मे

आपमे कुछ तो अमीर है, बाकी है बिकते सस्ते मे
हममे से कुछ बंगलों मे, बाकी रहते है रस्तेमे

आगे पीछे करते हो तुम, जिस से आप का हो फायदा
देख के मालिक दुम हिलाना हमारे पास भी है कायदा

पा कर सफलता मतलब मे, आप है जाते उसको भूल
धक्का खाके भी मालिक से ईमान रखना अपना कूल

संस्कृतीका अपनेही करते रहते हो टणत्कार
हम तो कभी नही करते, मादियों पर बलात्कार

दुसरोंका चूस कर खून संचय न करे कल के लिए
हम है हरदम सैलानी, जीते है आज पल के लिए

हो कर मोहीत आप पर, कुछ कुत्ते है घुसे आप मे
पता नही आपको शायद, डूब रहे है पाप मे

आतंकवादी भेजनेका आज कल है जमाना
हमने भेजे है और कोई आपने शायद न जाना

भ्रुण हत्त्या करने डॉक्टर भेजे, और झगडे करने प्लीडर
आतंक अच्छा मचा रहे है, कामगारके लीडर

नेता आप मे कौन है, हमे कुछ पता नही
ढूंढ ढूंड कर थक गये, पा न सके उनको कंही

अंदरसे संसद के क्यों भोकना सुनाई देता है?
अंदर मेरे भाई बहन या आपके नेता है?

तुम तो कारण हो औरों की पीडा और व्यथाओं के
खलनायक हो तुम हमारी व्य्थापूर्ण कथाओंके

तुम पर भोंके तो क्या भोंके, गुस्सा नही आता है तरस
अंतर मन मे झाको बदलो, बीत न जाये और बरस


निशिकांत देशपांडे मो.क्र. ९८९०७ ९९०२३
E Mail-- nishides1944@yahoo.com


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