{ महाराष्ट्र मे जिस तरह बेटीको नागपंचमीको मायके लाया जाता है, झूले खेलनेका चलन है बिलकुल यही तरहसे पंजाबमे तीज त्योहार मनाया जाता है. इस त्योहारपर "विश्व बेटी दिन" के अवसर पर मेरी एक हिंदी रचना. }
कल तक पलकोंमे बैठी थी
छोटीसी गुडिया रानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
सुनती थी कलतक दिलसे
"एक था कव्वा एक थी चिडिया"
नींद तेरे पलकोंमे आती
सपनोंकी चढती थी सिडियां
खुदके जीवनमेहि दिखे ना
ढुंड ढुंड खुदकी ही निशानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
काली चोटीपर बांधा था
मनभावन एक लाल परांदा
आंगन तू रहते, खुशियोंसे
भरा हुआ था कभी घरोंदा
बिदा किया जब प्रियतम के घर
तनहाई क्या करें बयानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
सजा रखा है घर, आंगन भी
तीजको तू आनेवाली है
दो दिनहि सही लेकिन मायूसी
घरसे गुल होने वाली है
तेरी आहटसे बदली है
हम लोगोंकी बुझी कहानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
कैसे बीते दो दिन सुखके!
बीते क्या? उड गये कहां!
शांती सुखसे मानो जैसे
रिश्ते फिरसे जुडे यहां
माया थी सब दोही दिनकी
लगती थी फिर भी रुहानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
तू झूलें सखियां भी झुलें
झुलेसंग मनभी तो झुलें
तीज मनाने धरतीपर उतरा
चंदरभी अंबरको भूले
डूबी दुनिया मस्त मजे मे
जैसे तीज कि हुयी दिवानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
आख़िर वह दिन आही गया
जब जाना था घर अपने
हंसी-खुशीसे बिदा किया
पर टूट गये सारे सपने
इंतज़ार था नये तीज का
तब लिखेंगे नयी कहानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
निशिकांत देशपांडे. मो. क्र. ९८९०७ ९९०२३
कल तक पलकोंमे बैठी थी
छोटीसी गुडिया रानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
सुनती थी कलतक दिलसे
"एक था कव्वा एक थी चिडिया"
नींद तेरे पलकोंमे आती
सपनोंकी चढती थी सिडियां
खुदके जीवनमेहि दिखे ना
ढुंड ढुंड खुदकी ही निशानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
काली चोटीपर बांधा था
मनभावन एक लाल परांदा
आंगन तू रहते, खुशियोंसे
भरा हुआ था कभी घरोंदा
बिदा किया जब प्रियतम के घर
तनहाई क्या करें बयानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
सजा रखा है घर, आंगन भी
तीजको तू आनेवाली है
दो दिनहि सही लेकिन मायूसी
घरसे गुल होने वाली है
तेरी आहटसे बदली है
हम लोगोंकी बुझी कहानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
कैसे बीते दो दिन सुखके!
बीते क्या? उड गये कहां!
शांती सुखसे मानो जैसे
रिश्ते फिरसे जुडे यहां
माया थी सब दोही दिनकी
लगती थी फिर भी रुहानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
तू झूलें सखियां भी झुलें
झुलेसंग मनभी तो झुलें
तीज मनाने धरतीपर उतरा
चंदरभी अंबरको भूले
डूबी दुनिया मस्त मजे मे
जैसे तीज कि हुयी दिवानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
आख़िर वह दिन आही गया
जब जाना था घर अपने
हंसी-खुशीसे बिदा किया
पर टूट गये सारे सपने
इंतज़ार था नये तीज का
तब लिखेंगे नयी कहानी
ना जाने कब हुयी अचानक
बिटिया मेरी बडी सयानी
निशिकांत देशपांडे. मो. क्र. ९८९०७ ९९०२३
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