Monday, February 26, 2018

सेल्युलर जेल


( जब मै अंदमान गया था, जेलके उस कमरेमे पहुंचा जहाँ प्रखर राष्ट्रभक्त सावरकरजीको रखा था| आँखोमे आँसू उमड पडे और भावनावेगमे लिखी गयी; थोडी प्रदीर्घ रचना. जेलके प्रवेशद्वार पर एक पुराना सुखा पिंपलका वृक्ष आजभी खडा है. उसका मनोगत पढिए. सावरकरजीकी आज पुण्यतिथी है. इस उपलक्ष्यमे सादर)

साक्षीधर हूं अन्याओंका
दे न सका अपनोंको छाया
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया

जेल बनाने अंग्रेजोंने
सब वृक्षोंको तोडा
पता लगा था अशुभ दिनोंका
जब मुझको था छोडा
यक्ष प्रश्न है मेरे भाग्य मे
प्रवेशद्वार क्यों आया
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया

दस साल लगगये बनाने
सेल्यूलर था नाम जेल का
स्वतंत्रता सेनानी लाकर
दंडित करना नाम खेलका
दर्दभरी पीडा का भोजन
सबने हंसते था खाया
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया

स्वतंत्रता की आशा लेकर
सेनानी आया करते थे
हर कोनेसे आनेवाले
जवान मुझको भाते थे
कितनी माँ बहनोंने होगा
राग विरह का गाया!
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया

मूंछ ना फुटी ऐसे सेनानी
जवान बच्चे आते थे
प्रखर राष्ट्र भक्तीसे प्रेरित
जेल मे हंसते जाते थे
हर कमरे के अंधियारोंमे
तपता सूरज था पाया
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया

पीडाओंका स्त्रोत था यहाँ
कर्ण बधीर थी चींखे
कैसे देखे बुलंद सपने
इन युवकोंसे सीखे
आहट दरवाजा खुलनेकी
अब किसको है लाया?
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया

सावरकर था नाम शख्स़्का
चेहरेपर था तेज
शायद अंग्रेजोंको हिलाने
नियतीने दिया था भेज
जहालता का जुनून उनका
सबके मनको था भाया
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया

महासागर पीडाओंके
हसते हसते तरते थे
आजा़दीकी प्यारी बाते
दृढनिश्चयसे करते थे
उनकी बातोंसे लगता था
मुहूर्त अजा़दी का आया
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया

स्वतंत्रता का यज्ञ चला है
प्राण आहूती देंगे हम
काला पानी कहों ना इसे
बनकर शहीद रहेंगे हम
फिरंगियोंके जुल्म मे झलके
अपनेही डर का साया
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया

आजा़दी ना आये जबतक
बहे हमारी खूनकी धारा
जंग हमारी; जीत हमारी
चाहे बीते जितनी सदियां
जुनून जब है आजा़दी का
क्यों सोंचे क्या पाया?
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया

जेल बना है मंदिर जिसमे
गूंजे आजा़दी की कहानी
राष्ट्रभक्तीसे प्रेरित श्रोता
होते सुनकर मेरी बयानी
देश प्रेमका दिया जलाना
जुनून मुझपर है छाया
पिंपलका हूं वृक्ष अभागा
सूखे नयनन कृश है काया


निशिकांत देशपांडे. भ्र.ध्व. ९८९०७ ९९०२३

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