रास रचाते नही कन्हैया
नही है राधा भोली
कोई बताओ मेरे यारों
कैसे खेले होली?
होली क त्यौहार है लेकिन
अपनापन खो गया कहाँ?
धर्माधारित झगडे होते
सब मरते है यहाँ वहाँ
क्यों मानव होगया अमानव?
बस्ती अब गुंडों की टोली
कोई बताओ मेरे यारों
कैसे खेले होली?
केसरियाँ को छोड दिया
मिट्टी का है तेल छिडकते
मेहंदी सूखने के पहलेही
कपडे हरदिन है भडकते
फिरे द्रौपदी भीक माँगती
कहाँ कृष्ण जो भर दे झोली?
कोई बताओ मेरे यारों
कैसे खेले होली?
निसर्ग का जब हुआ प्रकोप
भूकंप मे थे मरे अनेक
भाग दौडके आये बाबू
मदद राशी का काटने केक
गबन हो गये धन और आँसू
कौन सुने पीडित की बोली?
कोई बताओ मेरे यारों
कैसे खेले होली?
पूनम के दिन होली रहते
चाँद गगन मे क्यूं ना आया
काली करतूतोंसे हमारी
शायद होगा वह शरमाया
साक्षीधर इसका ना होने
खायी होगी नींद की गोली
कोई बताओ मेरे यारों
कैसे खेले होली?
निशिकांत देशपांडे. मो.क्र.९८९०७ ९९०२३
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