जगमग झिल मिल दुनिया सारी, मेरे घरमे दिया न बाती
रिश्ता है यह जनम जनमका, घना अंधेरा मेरा साथी
नौ दो ग्यारह सभी हो गये, सवार मुझपर तनहाई है
इर्द गिर्दमे विरान बस्ती, सुनी कभी ना शहनाई है
ऊबगया हूं इस दुनियासे, मौत मुझे है अब ललचाती
रिश्ता है यह जनम जनमका, घना अंधेरा मेरा साथी
लाख ढूंडनेपर भी मुझको, अतीतमे ना खुशी मिली है
आगेभी बस यही सिलसिले, मुरझाहट क्या कभी खिली है?
चेहरेकी मुस्कान खो गयी, मायूसी अब है इठलाती
रिश्ता है यह जनम जनमका, घना अंधेरा मेरा साथी
कफ़न नही है, जमीं नही है, लावारिश क्यूं लाश पडी है?
अचेत मनवा खुश मरनेसे, जीनेकीही सज़ा कडी है
तलाशता हूं हमदम जिसके तौरतरिके हो जजबाती
रिश्ता है यह जनम जनमका, घना अंधेरा मेरा साथी
नयननसे असवनके मोती गिरागिराकर क्या पाओगे?
टूट गये जो अंदरसे तो मंज़िल तक कैसे जाओगे?
सवारना तुम खुदको खुदही, सीख जिंदगी है सिखलाती
रिश्ता है यह जनम जनमका, घना अंधेरा मेरा साथी
सुखमे हसना, दुखमे रोना जीवनकी है यही वंचना
सावनका हो गीत कभी या मीराकी दुखियारी रचना
मधुर स्वरोंमे बध्द पंक्तिंया, छूकर दिलको है बहलाती
रिश्ता है यह जनम जनमका, घना अंधेरा मेरा साथी
निशिकांत देशपांडे. मो.क्र. ९८९०७ ९९०२३